ख़ामोशी

                                                 ख़ामोशी

 बैठे रहते हो  खामोश  क्यूँ
बुत की तरह
एक भी  लफ्ज  ज़ुबान पर  आता नहीं
आखिर क्या खता है मेरी 
क्यों मुझे  बताते नहीं 
  क्यूँ नाराज है मुझसे 
 वजह   बताते नहीं  !
क्या   कहूँ मै  उससे   उसकी खामोशी मुझे
बैचैन करती है
 क्यू मुझे आजमाता है
बढ़ के हाथ थाम लू मै उसका
 कभी  प्यार जताता  नहीं है 
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