लेख आज कि स्त्री - बदलती सूरत !

                   लेख           आज  कि स्त्री - बदलती सूरत  !
स्त्री के बारे मे साहित्य मे इतना  लिखा  गया कि शब्द कम पड़ गए ! स्त्रियों ने खुद के बारे मे लिखना और सोचना शुरू कर दिया !स्त्री समस्त सौंदर्य का सार है  ! सामाजिको ने कहा कि स्त्री  दया ,ममता करुना कि मूर्ति है वो त्याग कि मिसाल है स्त्री द्रितियक है !आखिर समय ने कहा .स्त्री भी मनुष्य है .न कम न ज्यादा न माया न रूप  न शक्ति न अबला ! स्त्री आने वाले जीवन कि एक नयी  संभावना है ! स्त्री जीवन कि गहराइयों से स्त्रिया ही वाक़िफ़ होती है !     उतना शायद  कोई और नहीं  !स्त्री जिस दिन कवि होती है वो अपने आप मे पूर्ण होती है एक स्त्री के रूप मे ! वो अपने आप को कविता के माध्यम से अभिव्यक्त  करती है !दुःख संताप से ही एक स्त्री कवि हो पाती है  !  शुष्क व्यवहार और उपेक्षा सहते हुए भी स्त्री ने अपने सौंदर्य और सहजता को बहुत खूब सुरती के साथ  बनाये रखा है ! आज स्त्री शक्ति कि उपेक्षा होती है !कन्याओ को जन्म नहीं लेने दिया जाता  ! संतुलन सहन शीलता  व्  सर्जन का पर्याय  है स्त्री ! महज  समर्पण   कि भावना के साथ जिंदगी जीना बहुत कठिन है जो स्त्री ही कर सकती है !जितनी तेजी से महिलाओ कि सोच बदली है समाज कहा बदला है ? स्त्री का जीवन उसका ही नहीं बल्कि कई मायनों  मे उसके परिवार और समाज कि गतिशीलता का परिचायक होता है ! स्त्री ही होती है जो  लोगो की अच्छी सेवा कर सकती है दुसरो की भरपूर  मदद कर सकती है ! जिन्दगी को अपनी तरह से प्यार कर सकती है !और मृत्यु को गरिमा प्रदान कर सकती है !
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