पिता का स्वप्न

                                                       पिता का स्वप्न

    पिता का सपना हू मे 
मैंने सीखा था  चलना
थाम कर अपने पिता की उंगलिया 
कुछ खुश  होकर .कुछ   भयभीत   सी
आज ही पिता की जरुरत j
ज्यादा महसूस हो रही है
जब   ज्यादा सक्षम हू बचपन के मुकाबले
आज पिता के सामने  बाट  नहीं पाती
अपना दर्द
आज ढ़ूँढ़ रही हू अपना वो मुकाम और पहचान
की पिता मुझ को देख कर
गर्व कर सके कि मे उनकी बेटी हू 
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