अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मायने क्या है ?


    अभिव्यक्ति की   स्वतंत्रता  के मायने क्या है ?

अभिव्‍यक्‍ित की स्‍वतंत्रता अपने भावों और विचारों को व्‍यक्‍त करने का एक राजनीतिक अधिकार है। इसके तहत कोई भी व्‍यक्ति न सिर्फ विचारों का प्रचार-प्रसार कर सकता है, बल्कि किसी भी तरह की सूचना का आदान-प्रदान करने का अधिकार रखता है। किसी सूचना या विचार को बोलकर, लिखकर या किसी अन्य रूप में बिना किसी रोकटोक के अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता यानि कि freedom of expression कहलाती है
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हमारा मौलिक अधिकार है। आज हमारे इस अधिकार की एक ओर जहाँ संवेदनहीन अनदेखी हो रही है, वहीँ अभिव्यक्ति का नया माध्यम सोशल नेटवर्किंग साइट, सत्ता में बठे लोगों को अखर भी रहा है। बाल ठाकरे के देहांत पर सोशल साईट फेसबुक पर टिप्पणी करने पर पुलिस ने दो लडकियों को गिरफ्तार कर लिया। शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे के निधन पर ‘मुंबई बंद’ को लेकर उन्होंने टिप्पणी की थी कि ‘ठाकरे जैसे लोग जन्मते और मरते हैं। इसके लिए बंद का आयोजन नहीं किया जाना चाहिए, जो कुछ घटा, वह दुर्भाग्यपूर्ण है।”
कुल मिलाकर युवतियों की निर्दोषता पर संदेह नहीं किया जा सकता। महाराष्ट्र राज्य महिला आयोग में भी प्रतिष्ठित वकील आभा सिंह ने मानवाधिकार उल्लंघन की शिकायत की है। उन्होंने मामला दर्ज करने वाले पुलिस अधिकारियों को बर्खास्त करने की मांग की है।
उधर राज ठाकरे के बारे में फेसबुक पर टिपण्णी करने पर एक लड़के को गिरफ्तार कर लिया गया। सहज टिप्पणी करने या अपनी बात अभिव्यक्त करने की इतनी बड़ी सजा! उन दो लड़कियों का हश्र जग जाहिर है। फेसबुक और ट्वीटर पर लिखने पर एक युवक और युवतियों को गिरफ्तार कर लिया गया। पश्चिम बंगाल में कार्टून के रूप में अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति के कारण प्रोफ़ेसर जैसे पद पर आसीन बुद्धिजीवी कलाकार को दंड भुगतना पड़ा। ऐसी घटनाए हमारे देश में अभिव्यक्ति पर लगाम लगाने के सामान ही है


स्वतंत्र भारत में हर नागरिक को अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतंत्रता भी तो होनी चाहिए, तभी भारत को स्वतंत्र कहना सार्थक होगा। लोगों के चुप रहने से हमारे लोकतंत्र को खतरा है और लोकतंत्र में ऐसे लोगों की जरुरत है जो आगे बढ़कर अपनी बात कह सके। सबसे बड़ी बात यह है कि युवा राजनीतिक नेतृत्व से निराश हो चुके हैं। जिनकी भड़ास इन सोशल नेटवर्किंग साइट्स के माध्यम से टिप्पणियों के रूप में सामने आ रही है और नेताओं की कुछ न करने की कुंठा करवाई के रूप में अभिव्यक्त हो रही है
अरब देशो में जब से सोशल नेटवर्किंग साइट्स बदलाव का वाहक बनी तब से तमाम देशों की सरकार डरी-सहमी सी नजर आ रही है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स उन तमाम देशों में पूरी तरह से प्रतिबंधित है, जहाँ पर तानाशाह या साम्यवादी सरकारें काबिज है। भारत में भी सोशल साइट्स के इस्तेमाल को रोक पाने में विफल रहने के बाद सरकार ने उन पर शिकंजा कसना प्रारंभ कर दिया है जो कभी साइट्स संचालकों को चेतावनी के रूप में सामने आता हैं, तो कभी अपनी बात कहने वालों पर सीधी कार्रवाई के रूप में दिखाई देता है। हमारे नेता हमेशा अभद्र टिप्पणियाँ और अनर्गल बयान देते रहते है। महिलाएँ तो मानो अश्लील भाषा की प्रयोगशालाए बन गई हैं। उनके द्वारा दी गई तमाम टिप्पणियाँ जनता के लिए अपमानजनक हैं, उनकी धार्मिक आस्था को आहत करने वाली हैं। क्या सचमुच क्षमा करने लायक हैं? क्या नेता कानून से ऊपर है? उनके विरुद्ध दंडात्मक करवाई क्यों नहीं होती? क्या इन सवालों के कोई जवाब है? शायद नहीं

हमारी शासन प्रणाली में बदलाव की जरुरत है, जिसमे नेता अपने आपको जनता का सेवक समझे, न की उन पर शासन करने वाला राजा। अगर किसी की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पाबन्दी लगती है तो फिर इन नेताओं को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर वांछित रोक लगनी चाहिए, जो कभी भी कोई न कोई विवादस्पद बयान दे देते हैं, लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती।

एक तरफ तो हम युवाओं को स्वतंत्र अभिव्यक्ति का माध्यम उपलब्ध करवा रहे हैं, दूसरी और ये भी उम्मीद कर रहे हैं कि वो हमारे नाकारा नेतृत्व के बारे में कोई टिप्पणी नहीं करे, बल्कि उनकी शान मैं कसीदे पढ़े। हमारे नेताओं को अपनी ग़लतियों पर गुस्सा होने की बजाय उन गलतियों को स्वीकार कर फिर से ना दोहराने का हौसला होना चाहिए। युवाओं को किसी न किसी डराने, धमकाने से युवाओं में आक्रोश और कुंठा पैदा होगी, जो देश और समाज के लिए घातक हो सकती है…………।
वैसे इस मुद्दे पर जितना कहा जाये, उतना कम ही होगा और बात को कभी ख़त्म नहीं किया जा सकेगा, लेकिन क्या किसी मुद्दे पर सिर्फ बात करना या सिर्फ सोचना भर ही काफी है? किसी भी मुद्दे पर बात करने या फिर सोचने से कहीं बेहतर है कि उसके बारे में चिंतन किया जाए और एक बार खुद पर लागू करके उसका कोई समुचित हल निकाला जाए।

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