मकर संक्रांति जयपुर में पतंग और मंजा

      मकर   संक्रांति         जयपुर में  पतंग और मंजा


त्यौहार के देश का एक और त्यौहार है मकर संक्रांति  ! यह त्यौहार देश के
हिस्सों मैं अलग अलग तरह से मनाया जाता है ! कही पर इसे मकर संक्रांति
कहते है तो  कही पर पोंगल ! जिस प्रकार तिल  और गुड के मिलने से मीठे
मीठे लड्डू बनते हैं !उसी तरह जीवन में भी ख़ुशियों की मिठास बनी रहे
जीवन मैं नित नई उर्जा का संचार हो और पलंग की तरह हम भी उचाइयो  को छुए
इसी शुभ कामना के साथ सूर्य पर्थ मकर संक्रांति पूरी श्रद्धा और उल्लास
के साथ मनाया जाता है ! और भारत वर्ष मैं जयपुर शहर तो अपनी पतंगबाजी के
लिए बेहद प्रसिद्ध  है देश विदेश ये यहाँ पर लोग पतंगबाजी का मजा  लेने
के लिए आते है ! विदेशी पर्यटक भी पतंग उड़ाते है !जयपुर की फीनी तो बहुत
प्रसिद्ध  है पकोड़ी और फीनी  को साथ मे खाने का आनंद लिया जाता है ! इस
दिन  तिल से बने प्रदार्थो  का सेवन किया जाता है ! रंग बिरंगी पतंगे
आसमान मे उडती नजर आती है और उन्मुक्त आकाश में उडती पतंगों को देखकर मन
मैं स्वतंत्रता का अहसास  होता है ! हर तरफ वो काटा वो  मारा का शोर
सुनाई देता है जो मन मे एक नई उमंग और नया जोश भर देता है
सूर्य की मकर संक्रांति को महापर्व का दर्जा  दिया जाता है !  धार्मिक
मान्यताए भी इस महापर्व के साथ जुड़ी  हुई है   ! मकर संक्रांति पर गंगा
मैं स्नान करने पर सभी कष्टों का  निवारण  होता है !  इस दिन दिया गया
दान विशेष फल देने वाला होता है  वेदों और पुराणों  मैं इस दिन का विशेष
महत्व है ! मकर संक्रांति के दिन पवित्र गंगा नदी का धरती पर अवतरण हुआ
था ! सूर्य के धनु मकर राशि मैं प्रवेश को उत्तरायण  माना जाता  है  इस
राशि परिवर्तन के साथ ही इसे मकर संक्रांति कहते है !  इसी दिन हमारी
धरती पर एक नए वर्ष और सूर्य एक नई गति मैं प्रवेश करती है !  मकर
संक्रांति से प्रकृति भी करवटे  बदलती है ! इसकी अंग्रेजी  तिथि भी
प्रायः 14 जनवरी रहती है !  हरियाणा और पंजाब मैं इसे लोहिडी की रूप मैं
मनाया जाता है !उत्तर प्रदेश और बिहार मैं इसे खिचड़ी कहा जाता है और दान
का पर्व  माना जाता है !
             तमाम मान्यताओं के बाद  इस त्यौहार को मनाने  पीछे एक ही
तर्क रहता है वह है सूर्य की उपासना और दान  !मकर संक्रांति के शुभ
मुहर्त  में स्नान ,दान पुण्य का विशेष  महत्व है ! और  शरीर  पर गुड  व
तिल  लगाकर नर्मदा मैं स्नान करना लाभदायक होता है ! ऐसा  कहा जाता है कि
 गंगा जमुना और सरस्वती के पवित्र संगम पर  प्रयाग मैं मकर संक्रांति के
पर्व के दिन सभी देवी देवता अपना स्वरूप बदलने के लिए स्नान करने आते है
! इसलिए वह पर मकर संक्रांति के दिन स्नान करना बहुत पुण्यदायी माना
जाता है  ! ज्योतिश्शास्त्रो के ग्रंथो मैं वर्णन है कि सूर्य के संक्रमण
कल मैं जो मनुष्य स्नान नहीं करता वह सात जन्मो तक रोगी निर्धन तथा दुःख
भोगता रहता है !इस दिन कम्बल दान से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है !
उत्तर भारत मैं तो गंगा यमुना के किनारे बसे गाँवो और नगरी में तो मेलो
का आयोजन होता है ! पोराणिक कथा यह है कि इस दिन गंगा जी स्वर्ग से  उतर
कर भागीरथ के पीछे पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम में जाकर मिल गई ! गंगा
के पवन  जल से ही राजा  सगर के साठ हजार श्रापित पुत्रो का उद्धार हुआ !
राजस्थान मैं इस पर्व पर सुहागन महिलाएँ अपनी सास को बायना देकर आशीर्वाद
प्राप्त करती है !साथ ही महिलाएँ किसी भी सोभाग्यसुचक वस्तु  चोदह की
संख्या में पूजन और संकल्प कर चोदह ब्राह्मणों को दान मैं देती है ! गलता
कुंड  में स्नान कर  श्रद्धालु गण  पुण्य  भी कमाते है !  इस पर्व का
ऐतिहासिक महत्व भी है ! महाभारत मैं पितामह भीष्म ने सूर्य के  उत्तरायण
होने पर ही स्वेच्छा से शरीर  का परित्याग इसी दिन किया था ! 1761 मैं
इसी दिन पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठा सेना  की पराजय से भारत मैं
हिन्दू राज्य का स्वप्न टूट गया था ! कुछ विद्वानों के अनुसार ईसा का
जन्म  भी इसी दिन हुआ था !  इस  तरह से मकर  संक्रांति का पर्व  धार्मिक
और एतिहासिक मान्यताओ से जुड़ा  है  और  साथ ही  जीवन में एक नई  उर्जा और
उत्साह लेकर आता है ताकि  हम फिर एक नई  उम्मीद और होंसले के साथ खड़े हो
और समाज मे  एकजुटता के साथ  रहे कहते है कि गजक रेवड़ी में पड़े तिल गुड
आदि आपस मैं सामाजिक समरसता के भी संदेशवाहक है !
Previous
Next Post »