वैलेंटाइन और बसंतोत्सव


                  वैलेंटाइन और  बसंतोत्सव

मौसम में  जब बदलाव आता है और बसंती बयार मन को ख़ुशी से भर देती है ! मन मे प्यार के अहसास जागने लगते है ! सब कुछ मन को लुभाने लगता है ! हिंदुस्तान में  इस बसंतोत्सव को  बाजार की शक्ल कभी नहीं दी  गई लेकिन आज  प्रेम प्रदर्शन का पूरी तरह बाजारीकरण हो गया है ! आज हमारे व्रत त्यौहार की तरह हमारी  धरती  पर पाश्चात्य वैलेंटाइन डे मनाया जाने लगा है !
आज हम देख रहे है कि  बसंतोत्सव की जगह वैलेंटाइन  डे लेता जा  रहा है ! चिंता की बात यह है कि प्रेम इजहार की यह पाश्चात्य  संस्कृति हमारी संस्कृति का विनाश कर रही है !और इसके साथ ही आज  का हमारा युवा वर्ग रास्ता  भटक गया है ! प्यार मोहब्बत सब एक ही तो है ! मैं  नहीं मानती की किसी दिन  कुछ खास करने से यह होता है !  प्यार  सीमाओं से परे है,समझ से परे है...न ज्यादा बात करने से प्रेम होता है न ज्यादा मिलने से...न तोहफे देने से प्रेम होता है.. प्यार के लिए न तो कोई  उम्र का बंधन होता है और न ही जात पात  इसमें  आड़े आते है ..सच्चा प्रेम अगर हो गया तो उसका कोई बड़ा कारण नहीं होगा...सिर्फ ये हो सकता है कि आपकी आत्मा को उसकी आत्मा से जुडाव है. उसकी ख़ुशी से आप खुश और उसकी तकलीफ से आप  परेशान हों...ये भी एक आलोकिक अनुभव है....जब आप किसी का साथ पाने के लिए मुश्किल रास्ता चुन लेते हो  !  भारत की संस्कृति मे  बसंतोत्सव के रूप मैं भारत इसे मनाता है  लेकिन भारत में  बसंतोत्सव की जगह  वैलेंटाइन डे ने ले ली है !  यह वैलेंटाइन डे दो हफ्ते चलता है !  इस महीने को प्यार का महिना  बनाकर बच्चो और युवाओ का  पढाई से ध्यान  हटाकर प्यार इश्क में  लगा दिया है ! सात से बीस  फ़रवरी  तक चलने वाले इस लव मंथ  के लिए  हर दिन का अलग अलग नाम दिया गया है ! चोदह दिनों में  प्यार होता है फिर  ब्रेकअप भी हो जाता है  ये  कैसा प्यार है ? प्यार तो जन्म जन्मतांतर तक होता है  हर किसी से नहीं होता  ! अगर सच्चा प्रेम है तो उसमे स्वार्थ नहीं त्याग   की भावना होती है ! आज पच्छिमी चकाचोंध और अन्धानुकरण ने  सारी भारतीयता को  अपने में समेटने का बीड़ा उठा लिया है ! आज  हम पुरे पच्छिमी हो पाए न भारतीय  ! किसी भी देश  को उसकी संस्कृति से पहचाना जाता है  ! हमारी भारतीय संस्कृति और परंपरा इतनी  समृद्ध है कि  विदेशी न केवल इसे जाने के लिए लालायित रहते है बल्कि अपने देशो मैं  भी इसका प्रसार कर रहे है बस अब हमारे समाज और युवाओ को सँभलने की जरुरत है ताकि हमारी सभ्यता और संस्कृति की पहचान निरन्तर बनी रहे  ! 



नीरू  

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