कविता बेटी

कविता   बेटी


मन हो उठता द्रवित मेरा
जब देखती चहु और
बेटियों  की दुर्दशा
कही बलात्कार , कही पर
अत्याचार की शिकार बेटिया                      
कही दहेज की आग में
जलती बेटिया ,
कभी कोख में ही मार दी जाती
आखिर क्यू समझा जाता
बेटी को बोझ !
क्यू होती बेटी पुरुष की  विकृत
मानसिकता का शिकार ,
क्यु नहीं मिलता नारी को सम्मान
क्यू भेदभाव होता बेटा और बेटी में
क्यू वंचित रह जाती बेटी खुशियों से
क्यू नहीं सजती उसके मुख पर मुस्कान
आखिर बेटी से आती खुशिया हज़ार 
बेटियों को मत सताओ ,
बेटिया तो है ईश्वर का वरदान
                                               



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