तेजकरण  डंडिया  आदर्श  शिक्षक


 बड़े दुःख की बात हैं कि जाने मने शिक्षक तेजकरण डंडिया अब हमारे बीच में नहीं रहे ! लेकिन उनका आदर्श  आचरण और करम के प्रति निष्ठां भाव हमे प्रेरणा देता रहेगा !
20 जनवरी को जन्मे तेजकरन डंडिया ने 22 वर्ष की उम्र में सुबोध मिडिल स्कूल में सहायक अध्यापक के रूप में  अपने कार्य क्षेत्र में कदम रखा !वे प्रारंभ से ही कल्पना शील पर रचनात्मक सोच के धनी थे !उन्होंने शिक्षा प्रणाली की व्यावहारिक कठिनाइयों को समझते हुए शिक्षा को सहज बनाने का न केवल प्रयास किया अपितु अपने मोलिक चिंतन और मनन से योजनाए बनाकर व्यावहारिक रूप देना उनकी आदत में शुमार हो गया ! आम तौर पर स्कूल से निकलते ही विधार्थी अपने शिक्षको को भूल जाते हैं लेकिन उनकी सेवा  निवृत्ति के बाद भी उनके पढाये हुए विधार्थियों का उनसे जीवन पर्यन्त जुड़ाव रहा उन्होंने पहले कई सफल प्रयोग किये जिनकी सराहना देश के प्रसिद्द शिक्षाविदो अधिकारियो और राजनेताओ ने की !उनकी लोकप्रियता यह दर्शाती हैं कि अपने कर्त्तव्य का पूरी ईमानदारी से निर्वेहन करके ही अपनी विशिष्ट पहचान बनाई  जा सकती हैं !उन्होंने अपनी सोच और चिंतन से शुष्क व सामान्यतः कठिन जाने माने वाले विषय को सरस बना दिया !गणित पर उनकी पचास से अधिक पुस्तके प्रकाशित हो चुकी हैं ! उन्होंने स्काउट को सबल और सफल  नेतृतव  प्रदान किया ! आज के शिक्षको के लिए उनका व्यक्तित्व और कृतित्व एक दिशा हैं और एक चुनोती हैं दिशा इस मायने में कि  tusion से पैसा तो बनाया जा सकता हैं लेकिन केवल धन के बूते प्रतिष्ठा हासिल कर पाना संभव नहीं हैं ! डंडिया ने प्रतिष्ठा कमाई जिससे शिक्षक समुदाय भी गौरान्वित हुआ हैं !और चुनौती इस मायने में कि क्या आज के शिक्षक उन जैसे बन सकते हैं !वे शिक्षा में बदलाव के संवाहक भी बने और शिक्षा प्रणाली को रुचिकर बनाने में भी उनका अहम् योगदान रहा !डंडिया जी की राह पर सबको चलने की कोशिश करनी चाहिए !शिक्षा और समाज के क्षेत्र में भारतीय जनमानस को नई दिशा देने के लिए कलाकार और बुद्धि जीवी संघ ने उन्हें आजीविका रत्न से सम्म्मानित लिया था ! शिक्षा से समाज में बेहतरी कैसे लाई  जा सकती हैं!यह हम उनके व्यक्तित्व और कृतित्व से समझ सकते हैं ! उन्होंने अपने आपको शिक्षा के क्षेत्र तक ही सीमित नहीं रखा सामाजिक बुराइयों पर भी प्रहार करने से नहीं चुके !वे विभिन्न संस्थानों के माध्यम से समाज में व्याप्त बाल विवाह, मृत्यु भोज, पर्दा प्रथा आदि बुराइयों के निवारण किया !

उनको मैं नमन करती हु !


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